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मनौवैज्ञानिकों का कहना है कि लंबे समय तक हल्के तनाव का होना भी बच्चे के विकास पर बुरा असर डालता है। इसलिए गर्भावस्था में महिलाओं को कभी भी तनाव नहीं लेना चाहिए और ऐसी स्थिति में महिलाओं को ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत होती है। उनके शरीर पर किसी भी तरह का कोई दबाव ना पड़े इसके लिए महिलाओं को खासतौर से शारीरिक और अन्य सभी प्रारूपों से केयर करने की आवश्यकता होती है।

एक अध्ययन के अनुसार गर्भावस्था के दौरान किसी भी तरह का लिया गया तनाव गर्भ में पल रहे बच्चे पर बुरा असर डालता है। महिलाओं को ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि इस तनाव की आखिर क्या वजहे हैं। क्योंकि गर्भावस्था के दौरान कभी कभी उल्टी होना, वज़न का बढ़ना आदि समस्याऐं भी महिलाओं में तनाव का कारण बनती हैं। इसके अलावा परिवार में किसी सदस्य की मौता हो जाना या फिर घर की आर्थिक स्थित सही न होना आदि समस्याओं के चलते भी तनाव रहता है यहां तक कि डिप्रेशन, रंगभेद या अनचाहे गर्भ के कारण भी महिलाओं में तनाव उत्पन्न होता है। इसलिए तनाव को लेकर सबसे पहले इसकी वजह पता होनी चाहिए। वजह मालूम होने पर डॉक्टर, पार्टनर, परिवार व मित्रों की सहायता लेकर इसका समाधान निकाला जा सकता है। यदि आप इस समस्या का हल जितनी जल्दी निकाल लेंगे उतना ही होने वाले बच्चे के लिए बेहतर रहेगा।

गर्भ में पल रहे शिशु पर तनाव किस तरह प्रभावित करता है :

फेटल हार्ट रेट बढ़ जाना

जब कोई व्यक्ति किसी भी तरह का कोई स्ट्रेस लेता है तो उसके शरीर में अनेक प्रकार के स्ट्रेस हार्मोंस स्रावित होने लगते हैं। किसी भी तरह का खतरा होने पर भी ये हार्मोंस बनते हैं। ऐसी परिस्थिति से निजात पाने के लिए मांसपेशियों का मज़बूत होना बहुत आवश्यक होता है। इन हार्मोंस के बढ़ने पर हृदस की धड़कन तेज हो जाती है। जो कि गर्भवती महिलाओं के लिए ठीक नहीं है। क्योंकि गर्भ में पल रहे बच्चें को आपके द्वारा ही सारा पोषण मिल रहा होता है। शरीर में किसी भी तरह का नकारात्मक परिवर्तन बच्चे की जान को खतरे में डाल सकता है। इसलिए आपको शिशु की सुरक्षा के लिए किसी भी तरह के तनाव लेने से बचना चाहिए। क्योंकि अधिक तनाव लेने से शरीर का स्ट्रेस मैनेजमेंट सिस्टम सही प्रकार से काम नहीं कर पाता है।

इंफ्लामेंट्री प्रतिक्रिया

लंबे समय से यदि कोई गर्भवती महिला तनाव से ग्रस्त है तो उसके होने वाले बच्चे पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को यह समझना बहुत जरूरी है कि शिशु उसके गर्भ में पल रहा है और उसकी सभी चेतनाएं विकसित हो रही होती हैं। इसलिए तनाव को दूर करने का प्रयास करती रहें।
क्योंकि इसका सीधा असर आपके बच्चे पर पड़ेगा। अक्सर कई मामलों में ऐसी परिस्थिति में भ्रूण अतिसंवेदनशील या इंफ्लामेट्री प्रतिक्रिया भेजता है। ये इंफ्लामेट्री प्रतिक्रिया भ्रूण के पूरे स्वास्थ्य पर सीधा असर डालती है। 9 माह तक बच्चे को इस सबसे गुज़रना पड़ता है और प्रसव पर भी इसका बुरा असर पड़ता है।

बच्चे का कम वज़न

गर्भवती महिलाओं को ज्यादा तनाव नहीं लेना चाहिए क्योंकि प्रसव के दौरान ज़्यादा अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि तनाव लेने की वजह से भ्रूण, मां के शरीर से जरूरी पोषण नहीं सोख पाता है। नतीजन शिशु के जन्म में अनेक तरह की मुश्किले खड़ी हो जाती हैं।

भ्रूण के दिमाग का विकास

विशेषज्ञों का मानना है कि गर्भवती महिलाओं द्वारा लिया गया तनाव भ्रूण के मानसिक विकास पर सीधा असर डालता है। कई मामलों में तो शिशु जन्म के तुरंत बाद कोई प्रभाव नज़र नहीं आता है। यहां कि कि कुछ दुर्लभ मामलों में तो कई वर्षां के बाद भी शिशु में किसी विकार का पता नहीं लग पाता है। हालांकि बच्चा जैसे-जैसे बढ़ता है वैसे ही उसके व्यवहार में परिवर्तन आने लगता है। चिकित्सकों के अनुसार बच्चों में हाइपरटेंशन का बढ़ना गर्भवती महिलाओं और तनाव के बीच संबंध होता है। जिसकी वजह से बच्चे के आने वाले कल में तनाव की स्थिति पैदा हो सकती है।

गर्भपात का खतरा

ज्यादा लिया गया तनाव गर्भ के लिए केमिकल खतरे पैदा करता है। क्योंकि तनाव लेने के कारण कोर्टिकोट्रोपिन नामक हार्मोन रिलीज़ पैदा होता है। रक्त वाहिकाओं में इस हार्मोन के अधिक बनने पर गर्भाशय का संकुचन होने लगता है। यदि संकुचन गलत वक्त पर होता है तो ऐसे में गर्भवती महिलाओं का गर्भपात तक हो सकता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं के लिए यह जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि उसके द्वारा लिया गया अधिक तनाव गर्भ में पल रहे बच्चे की जान को खतरे में डाल सकता है। यदि आप अपने बच्चे को सलामत और स्वस्थ रखना चाहती है तो अपने आपको मानसिक और शारीरिक रूप से सेहतमंद रखना होगा और किसी भी तरह के तनाव से अपने को दूर रखना होगा।

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