ब्लड प्रेशर को साइलेंट किलर के नाम से भी जाना जाता है। हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित व्यक्ति के लिए जरूरी है कि वह अपनी लाइफस्टाइल और डाइट पर विशेष ध्यान दे। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि हाई बीपी के पेशेंट में कोई लक्षण या संकेत देखने को नहीं मिलते हैं। आइए जानते हैं, हाई ब्लड प्रेशर के लक्षण और उपचार क्या है, इसके कारण क्या होता है, हाई बीपी कंट्रोल कैसे करें? इत्यादि।
उच्च रक्तचाप एक सामान्य स्थिति है जो शरीर की धमनियों को प्रभावित करती है। इसे हाइपरटेंशन भी कहा जाता है। यदि आपको उच्च रक्तचाप है, तो धमनी की दीवारों के खिलाफ़ रक्त का दबाव लगातार बहुत अधिक होता है। हृदय को रक्त पंप करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है।
अनियमित दिनचर्या और जीवन शैली की वजह से होने वाला तनाव आज शहरी आबादी और खासकर युवाओं में उच्च रक्त चाप की समस्या के रूप में तेजी से सामने आ रहा है।भारत की लगभग ३० प्रतिशत शहरी आबादी इस रोग की चपेट में बताई गई है। जबकि १० से १२ प्रतिशत ग्रामीण इस रोग से पीडित हैं। चिकित्सा विग्यान में निम्न रक्त चाप की तुलना में उच्च रक्त चाप ज्यादा नुकसानदेह बताया गया है। कारण ये है कि उच्च रक्त चाप से रोगी में अन्य कई तरह की जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। ज्यादा रक्त चाप की परिणिति लकवा अथवा हार्ट अटेक में भी होती है। भारत में ३५ वर्ष से ज्यादा के लोगों में यह रोग तेजी से प्रवेश कर रहा है। यह चिंताजनक है क्योंकि यही आबादी देश की उत्पादक आबादी है।
बीपी हाई क्यों होता है? डॉक्टरों के अनुसार हाइपरटेंशन का मुख्य कारण लाइफस्टाइल से जुड़ी आदतें होती हैं, जिसके कारण और बीमारियाँ भी हो सकती हैं। अगर हाइ ब्लड प्रेशर हो जाने के बाद दवाइयां खानी पड़े तो उससे बेहतर हैं की इस बीमारी से बचने के लिए हम एहतियात बरतें और अपने जीवनशैली में बदलाव करें।
जब व्यक्ति असंतुलित आहार-विहार का सेवन करता है तो कफ व मेद की वृद्धि हो जाती है। कफ और मेद धमनियों में स्थान संश्रय कर धमनियों में कठिनता उत्पन्न करता है और वायु रक्त संवहन की प्रक्रिया को प्रतिकूल गति प्रदान कर रक्तचाप को बढ़ा देती है।
आपको बता दें कि उच्च रक्तचाप काफी आम है। आमतौर पर हाई ब्लड प्रेशर की समस्या कई वर्षों के दौरान विकसित होती है। हाई बीपी के कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं, जिसके कारण इसे साइलेंट किलर के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन लक्षणों के बिना भी, उच्च रक्तचाप आपके रक्त वाहिकाओं और अंगों, विशेष रूप से मस्तिष्क, हृदय, आंखों और गुर्दे को नुकसान पहुंचा सकता है।
इन सबके अलावा, जन्मजात स्थितियां, जैसे कि कुशिंग सिंड्रोम, एक्रोमेगाली, या फियोक्रोमोसाइटोमा होना भी एक जोखिम कारक है। कम वसा वाले आहार का सेवन, मध्यम वजन बनाए रखना, शराब का सेवन कम करना, तम्बाकू धूम्रपान बंद करना, उच्च रक्तचाप के जोखिम को कम करने में मदद करते हैं।
उच्च रक्तचाप का इलाज न किए जाने पर दिल का दौरा, स्ट्रोक और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है। 18 वर्ष की आयु से शुरू करके कम से कम हर दो साल में अपने रक्तचाप की जाँच करवाना महत्वपूर्ण है। कुछ लोगों को अधिक बार जाँच की आवश्यकता होती है।
स्वस्थ जीवनशैली की आदतें – जैसे धूम्रपान न करना, व्यायाम करना और अच्छा खाना – उच्च रक्तचाप को रोकने और उसका इलाज करने में मदद कर सकती हैं। कुछ लोगों को उच्च रक्तचाप के इलाज के लिए दवा की ज़रूरत होती है।
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