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अगर आप ध्वनि प्रदूषण को नजरअंदाज कर रहे हैं तो सावधान हो जाइये। वर्तमान समय में जिस तरह से लगातार वायु प्रदूषण बढ़ रहा हैं। उससे मानव जीवन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा है। तीव्र शोर-गुल को ध्वनि प्रदूषित कहा जाता हैं इसके सुनने से या लंबे समय तक तेज आवाज के संपर्क में रहने से आपको कई शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। स्तन कैंसर और टी.बी के मरीजों पर वायु प्रदूषण का सीधा प्रभाव पड़ता है। इससे न केवल आपको बहरापन और सुनने की क्षमता की कमी की शिकायत भी हो सकती है बल्कि याददाश्त एवं एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, अवसाद, नपुंसकता जैसी अन्य जानलेवा रोगों की चपेट में भी आ सकते हैं।

हम सभी भली भांति जानते हैं कि बड़े शहरों मुंबई, दिल्ली और कोलकाता के ट्रैफिक से खूब वायु प्रदूषण बढ़ा है। यातायात के दौरान उत्पन्न होने वाला शोर मुख्य कारण है। जनसंख्या वृद्धि के साथ ही यातायात और वाहनों की संख्या में भी अधिक में मात्रा में उन्नति हुई है। जिस वजह से यातायात के दौरान होने वाला ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ने लगता है। स्वास्थ्य के लिहाज से ध्वनि प्रदूषण काफी हानिकारक है। इससे व्यक्ति बहरेपन से लेकर कई तरह की गंभीर बीमारियों का शिकार हो सकता है। ऐसे में ध्वनि प्रदूषण और फोन का कम इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती हैं। तेज आवाज से ईयरड्रम डैमेज हो सकते हैं। ध्वनि प्रदूषण से बार-बार सिरदर्द, इरिटेशन और नर्वसनेस बढ़ जाती है, थकान महसूस होने लगती है और काम करने की क्षमता घट जाती है।

काम के दौरान सबसे अधिक बाधा उत्पन्न करने में ध्वनि प्रदूषण का बहुत बड़ा योगदान होता है। तीव्र ध्वनि प्रदूषण के कारण आप किसी भी काम में अपना ध्यान नहीं लगा पाते हैं जिस कारण आपकी काम करने की क्षमता प्रभावित होती है। ध्वनि प्रदूषण काम में विध्न तो डालता ही है साथ ही यह हमारी नींद को भी बुरी तरह से प्रभावित करता है। 50 डेसीबल से अधिक तेज ध्वनि नींद को प्रभावित करते हैं। जिस कारण से हमारी नींद पूरी नहीं हो पाती है और इसी वजह से आपकी कार्यक्षमता पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे आपके काम करने की क्षमता तो कम होती ही है बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाता है।

सर्वे के अनुसार लंबे समय तक तीव्र शोरगुल वातावरण के संपर्क में रहने से व्यक्ति तनावग्रस्त भी हो जाता है। क्योंकि ध्वनि प्रदूषण के साइकोलॉजीकल दुष्प्रभाव अधिक होते हैं इसलिए तेज शोरगुल वाले वाहनों और स्थानों से शिक्षण संस्थानों को दूर रखने की सलाह दी जाती है। अधिकतर वह लोग जो तेज ध्वनि के संपर्क रहते हैं उनमें हार्ट-अटैक का खतरा होने की संभावना अधिक रहती है। 85 डेसीबल से तेज ध्वनि दिल की धड़कनों, रक्त के प्रवाह को बढ़ा देता है। जिससे ब्लड प्रेशर भी बढ़ जाता है।

यातायात, शोरगुल और भी कई कारणों से होने वाला ध्वनि प्रदूषण मानव जीवन पर बुरा प्रभाव डालता है। जिससे व्यक्ति साइकोलॉजीकल और कार्डियोवेस्कुलर जैसी बीमारियों का शिकार भी हो जाता है और आपका सामाजिक बर्ताव भी नकारात्मक होने लगता है। ध्वनि प्रदूषण बच्चों की पढ़ाई में अत्यंत बाधक डालता है यहां तक कि मरीज़ों तथा वृद्ध लोगों के लिए ध्वनि प्रदूषण किसी मुसीबत से कम नहीं है। आए दिन होने वाले धार्मिक आयोजन या दूसरे शोर-शराबे से हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं। जिससे पूरा देश दुखी हैं।

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